टीपू सुल्तान का जीवन परिचय (Tipu Sultan Biography in Hindi)
टीपू सुल्तान सिर्फ मैसूर का शासक ही नहीं था बल्कि एक ऐसा राजा था जिसे उसकी बहादुरी एवं साहस के कारण भारत के इतिहास में काफी महत्ता प्राप्त हुयी. उसे टाइगर ऑफ़ मैसूर के नाम से भी जाना जाता हैं. उसकी पहचन पहले भारतीय शासक के रूप में हैं जिसने अंग्रेजों से लोहा लिया था, भारत की सरकार ने उसे आधिकारिक तौर पर स्वतंत्रता सेनानी घोषित किया हैं. ब्रिटिश आर्मी के नेशनल आर्मी म्यूजियम ने टीपू सुल्तान को ब्रिटिश आर्मी का सबसे महान दुश्मन माना था.
क्र. म.(s.No.) | परिचय बिंदु (Introduction Points) | परिचय (Introduction) |
1. | पूरा नाम ((Full Name) | सुल्तान फ़तेह अली टीपू |
2. | जन्म दिन (Birth Date) | 20 नवंबर 1750 |
3. | जन्म स्थान (Birth Place) | देवानाहाली |
4. | पेशा (Profession) | मैसूर का पूर्व शासक और अंग्रेजों से लड़ने वाला योद्धा |
5. | राजनीतिक पार्टी (Political Party) | – |
6. | अन्य राजनीतिक पार्टी से संबंध (Other Political Affiliations) | – |
7. | राष्ट्रीयता (Nationality) | भारतीय |
8. | उम्र (Age) | 48 वर्ष |
9. | गृहनगर (Hometown) | मैसूर |
10. | धर्म (Religion) | मुस्लिम |
11. | जाति (Caste) | – |
12. | वैवाहिक स्थिति (Marital Status) | विवाहित |
13. | राशि (Zodiac Sign) | वृश्चिक (Scorpio) |
14. | मृत्यु (Death) | 4 मई 1799 |
बचपन और प्रारम्भिक जीवन (Childhood & Early Life)
- टीपू सुल्तान के पिता खुद अनपढ़ थे लेकिन उन्होंने टीपू को अच्छी शिक्षा-दीक्षा दिलाई थी.
- बचपन से ही टीपू सुल्तान को विविध भाषाओँ में रूचि थी. वैसे वो कट्टर मुस्लिम था लेकिन उसने विभिन्न धर्मों का अध्ययन भी किया था.
- टीपू सुल्तान ने हिंदी-उर्दू, पर्शियन, अरेबिक, कन्नड़, कुरान और इस्लामिक ग्रन्थों के साथ ही घुड़सवारी,शूटिंग भी सीखी थी.
- टीपू सुल्तान के माता-पिता ने उसका नाम फ़तेह अली रखा था लेकिन टीपू मस्ताना औलिया नाम के संत के कारण उसका नाम टीपू पड़ गया था.
निजी जानकारी और परिवार (Personal Information and Family)
टीपू सुल्तान का परिवार काफी बड़ा था,और उसके वंशज अब भी मैसूर एवं कर्नाटक में रहते हैं. उसकी माँ फक्र-उल-निसा कडापा किले के गवर्नर की बेटी थी.
पिता (Father) | हैदर अली |
माता (Mother) | फख्र-उन-निसा(फातिमा बेगम) |
दादा (Grand Father) | फ़तेह मुहम्मद |
दादी (Grand Mother) | लालबाई |
चाचा (Uncle) | वाली साहिब |
बहिन (Sister) | सुल्तान बेगम |
भाई (Brother) | अब्दुल करीम |
पुत्र (Sons) | शहजादा हैदर अली सुल्तान,शहजादा मुहीउद्दीन सुल्तान और शहजादा मुइज्उद्दीन सुल्तान |
टीपू सुल्तान: एक कुशल प्रशासक
- टीपू सुल्तान ने सत्ता सम्भालते ही बहुत से प्रशासनिक परिवर्तन किये थे. टीपू ने प्रजा के लिए बहुत से कार्य किये थे, टीपू सुल्तान एक अच्छा शासक सिद्ध हुआ, उसने अपने पिता के अधूरे छोड़े गये सारे काम आगे बढाए और सडकें, पुल, इमारतें, पोर्ट इत्यादि बनवाये और किलों एवं महलों के जीर्णोद्धार जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी किये.
- उसके पिता फ्रेंच के साथ डिप्लोमेटिक राजनैतिक रिश्ते रखते थे, सुल्तान ने भी फ्रेंच अधिकारीयों से सैन्य प्रशिक्षण लिया था. उसने भी अपने पिता के नक्शे-कदम पर चलते हुए फ्रेंच के साथ दोस्ती कायम रखी जिससे कि उसे अंग्रेजों के साथ संघर्ष का फायदा मिल सके. उसने अंग्रेजों के साथ कई युद्ध किये और पूरी कोशिश की कि अपने राज्य को अंग्रेजो से बचा सके. टीपू सुल्तान ने मैसूर की नेवी बनाने में मुख्य योगदान दिया था, उसने युद्ध में राकेट के इस्तेमाल भी शुरू किया साथ ही एक ऐसी मिलिट्री फाॅर्स तैयार की जो ब्रिटिश फाॅर्स के लिए बहुत घातक सिद्ध हो सकती थी, जिसमे 72 तोपों वाले युद्धपोत,20 फ्रिंगेट वाले 62 तोप थी.
टीपू सुल्तान :एक योद्धा
- टीपू की परवरिश जहाँ हुयी थी, उस मैसूर ने अंग्रेजों से चार बार युद्ध किया था, जिसे एंग्लो-मैसूर युद्ध कहते हैं. टीपू उस समय मात्र 15 वर्ष का था जब उसने अपने पिता का युद्ध में साथ दिया था, उसने न केवल पहला मैसूर का युद्ध लड़ा था बल्कि पिता हैदर को दक्षिण भारत में काफी प्रभावशाली राजा बनाने में भी योगदान दिया.
- पहला एंग्लो-मैसूर युद्ध 1767 से लेकर 1769 तक चला था. वास्तव में 1767 तक मैसूर हैदर अली के एक शक्तिशाली राजा था, इस युद्ध में हैदर अली ने अंग्रजों को हरा दिया था और इसके अंत में मद्रास की संधि हुयी थी, जिसके कारण हैदर अली को लगभग पूरा कर्नाटिक क्षेत्र मिल गया था.
- 1779 में ब्रिटिश ने जब फ्रेंच अधिशासित बंदरगाह माहे पर कब्जा कर लिया जो कि टीपू की सुरक्षा में था, तो हैदर अली ने अंग्रेजों से युद्ध शुरू किया जिसे दूसरा एंग्लो-मैसूर युद्ध कहते हैं. ये युद्ध 1784 तक चला था. हैदर ने निजाम और मराठों की मदद से कर्नाटक की राजधानी आर्कोट को कब्जे में ले लिया.
- जुलाई 1781 में पोर्टो नोवो में एयरे कुटे ने हैदर अली को हरा दिया. युद्ध जैसे-जैसे आगे बढ़ा हैदर बीमार होता गया और अगले 2 वर्षो में दिसम्बर 1782 में उसकी मृत्यु हो गयी. हैदर अली की मौत के बाद उसके बेटे ने युद्ध को आगे बढाया. हैदर की मृत्यु के बाद 22 दिसम्बर 1782 को टीपू को मैसूर का शासक बनाया गया. इस तरह टीपू सुल्तान का औपचारिक तौर पर राजनैतिक और सामरिक जीवन शुरू हुआ था. उसने तुरंत ही मिलिट्री स्ट्रेटेजी काम शुरू कर दिया और मराठा और मुगलो की संधि से अंग्रेजों को कमजोर करने की कोशिश की. मार्च 1784 को टीपू ने मंगलोर की संधि की और एंग्लो-मैसूर का दूसरा युद्ध समाप्त हुआ. इस तरह टीपू सुल्तान कितना बड़ा योद्धा और कुटनीतिज्ञ था ये उसने दुसरे एंग्लो-मैसूर युद्ध में साबित कर दिया था क्योंकि उसके पिता का देहांत युद्ध के बीच में हो गया लेकिन उसने संधि होने तक युद्ध जारी रखा.
- समय के साथ टीपू महत्वाकांक्षी होने लगा और उसने अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार देने का सोचा. टीपू सुल्तान अंग्रेजों को हराकर पुरे भारत का बादशाह बनना चाहता था. उसकी नजर ट्रेवेन्कोर(Travancore) पर थी, जो कि मंगलोर की संधि के अनुसार ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के पास थी. उसने ट्रेवेंकोर पर दिसम्बर 1789 को आक्रमण कर दिया लेकिन उसे वहां के राजा का सामना करना पड़ा, और इस तरह तीसरा एंग्लो-मैसूर युद्ध शुरू हुआ. ट्रेवेंकोर के महाराजा ने अंग्रेजो से मदद मांगी थी और उन्होंने लार्ड कार्नवालिस को मराठा एवं हैदराबाद के निजाम के साथ भेज दिया. टीपू सुल्तान ने 1789 में नेडूमकोटा (Nedumkotta)में हुए युद्ध में अपनी तलवार खो दी थी. कम्पनी की सेना ने 1790 में टीपू पर आक्रमण किया और जल्द ही कोयम्बटूर जिले को अपने अधीन कर लिया, टीपू ने वापिस आक्रमण किया लेकिन वो इसमें ज्यादा सफल नहीं हुआ. इस तरह ये युद्ध 2 साल तक चला और 1792 में सेरिंगापटनम की संधि के साथ समाप्त हुआ जिसके कारण टीपू के हाथ से काफी इलाका निकल गया जिसमे मालाबार और मंगलोर भी शामिल था, इसमे मराठा और निजाम ने अंग्रेजों का साथ दिया और कॉर्नवालिस ने बंगलौर पर कब्ज़ा कर लिया.
चतुर्थ एंग्लो-मैसूर युद्ध और टीपू सुल्तान की मृत्यु
- अंग्रेजों को नेपोलियन के घुसपैठ का डर था, 1798 में जब ब्रिटिश गवर्नर-जनरल लार्ड मोर्निंगटन कलकता पहुंचा तो उसने टीपू सुल्तान वाले मामले को सबसे पहले सुलझाने का निर्णय किया. ईस्ट इंडिया कंपनी के सिपाही और घुड़सवार को जनरल हैरिस के दिशा-निर्देशों के अंतर्गत मद्रास में एकत्र किया गया जिसमे हैदराबाद के निजाम और मोर्निंगटन के छोटे भाई कर्नल आर्थर वेल्सले की थर्टी थर्ड रेजिमेंट ऑफ़ फुट का भी सहयोग था.
- 1799 के फरवरी में मैसूर पर आक्रमण की यात्रा शुरु की गयी, जिसमें हाथी,ऊंट के अतिरिक्त अधिकारीयों को मीट उपलब्ध करवाने के लिए हजारों भेड-बकरी के अलावा सैनिकों को खाना-पीना का मार्केट भी अंग्रेजों साथ रवाना हुआ, ये काफिला ना केवल काफी लक्जरीयस था बल्कि भीषण गर्मी में भी आगे बढने के लिए पूरी तैयार था.
- हालांकि टीपू इससे पहले युद्ध हार चुका था और उसने काफी क्षेत्र गंवा दिया था लेकिन उसका साहस बिलकुल कम नही हुआ था. ब्रिटिश जनरल के पास जहां 50,000 सैनिक थे वहीं सुल्तान केवल 30,000 सैनिको का नेतृत्व कर रहा था.
- अंग्रेजों ने सेरिंगपटनम की दीवारों को चारों तरफ से घेर लिया था,सुल्तान ने कुछ अंग्रेज सैनिकों को पकडकर मार दिया. टीपू दुश्मनों मानसून तक युद्ध को टालने के लिए शांति के संदेश भेज रहा था लेकिन अंग्रेजों ने घेराबंदी के साथ तोपों को तैनात करने का काम जारी रखा.
- 4 मई की सुबह टीपू को बताया गया कि उसके सितारे अच्छे नहीं हैं उसने दुर्भाग्य टालने के लिए हिन्दू ब्राह्मिनों को दान-पुण्य का काम किया. 1 बजे के पास अंग्रेजों ने हमला कर दिया, टीपू सुल्तान सब तरफ से घिरा हुआ था लेकिन उसने बहादुरी के साथ युद्ध किया और जब वह घायल हुआ तो उसके नौकरों ने उसे पालकी में बचाकर ले जाने की भी कोशिश की लेकिन एक अंग्रेज ने उसके गहनों के लिए उसे मार दिया. रात में अंग्रेजों को उसकी लाश बहुत सी लाशों के ढेर के नीचे मिली,उसे सम्मान पूर्वक अंतिम विदाई दी गयी.
- टीपू सुल्तान की हार और मरने की खबर खुशखबरी के रूप में इंग्लैंड तक पहुंची, सीनियर अंग्रेज अधिकारियों को बहुत से पैसे और अवार्ड्स भी सम्मानित किया गया. मोर्निंगटन को मार्क्वेस वेल्सले(Marquess Wellesley) बनाया गया, आर्थर वेलसेले को टीपू की जगह मैसूर का प्रभारी बनाया गया और उसे टीपू के महल में भेजा गया, जबकि सिंहासन किसी हिन्दू वंश के शिशु को बनाया और सभी टाइगर को गोलियों से उड़ा दिया गया.
इस तरह 18वीं शताब्दी में 3 दशकों तक अंगेजों और मैसूर के राजा के मध्य एंग्लो-मैसूर युद्ध चला था. चौथे युद्ध में अंग्रेजों के मैसूर पर अधिग्रहण के साथ ही ये युद्ध समाप्त हुआ था.
टीपू सुल्तान से जुडी अन्य रोचक जानकारी
- देश के पूर्व राष्ट्रपति ए.पीजे अब्दुल कलाम ने कहा था कि टीपू सुल्तान ही वो शासक हैं जिसके शासन में दुनिया के पहले राकेट का आविष्कार हुआ था.
- टीपू सुल्तान की तलवार: टीपू सुल्तान के दांत के बाद ब्रिटिश सरकार ने उसकी तलवार और अंगूठी को ट्रोफी के जैसे कब्जे में ले लिया था,जिसे 2004 तक तो ब्रिटिश म्यूजियम में दिखाया जाता था लेकिन इसके बाद विजय माल्या ने इसे नीलामी में खरीद लिया.
टीपू सुल्तान से जुड़े ऐतिहासिक विवाद Historian claims:
- वैसे भारत-पाकिस्तान में जहां उसे स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सम्मान मिला हैं वही देश के कुछ हिस्सों में उसे क्रूर शासक भी माना जाता हैं. बहुत सी रिपोर्ट के अनुसार इतिहासकार विलियम लोगन ने ये ने मालाबार मेन्यूल में ये दावा किया था कि चित्रक्कल तालूका (Chirackal Taluqa,)के थालिप्पराम्पू (Thalipparampu ) और थिरच्म्बारम (Thrichambaram) नाम के मन्दिर और टेलिच्जेरी (Tellicherry) के थिरुवंगातु (Thiruvangatu) के मंदिर को टीपू सुल्तान ने नष्ट किया था.
- टीपू सुल्तान ने बहुत सी जगहों के नाम बदल दिए थे जिनमें मंगलोर या मंगलापुरी को जलालाबाद, बेपुर को सुल्तान्पटनम, कन्नूर (Cannanore) को कुसनाबाद, गूटी को फैज-हिस्सार, धर्वर को कुँर्शेद-सवाद, डिंडीगुल को खालिकबाद,रत्नागिरी को मुस्तफाबाद,कोज्हिकोड़े को इस्लामाबाद और डिंडीगुल को खालिकाबाद नाम दिया.
- टीपू सुल्तान को बागबानी और कृषि विगान का बेहद शौक था. उसने विदेशों से कई तरह के बीज और पौधे मंगवाए थे. उसने बेंगलोर में लगभग 40 एकड़ का लालबाग का बोटेनिकल गार्डन तैयार किया था. टीपू सुल्तान ने अपने शासन में बहुत से जानवर भी गोद लिए थे.
- ओटोमन की कहानी: 1787 में टीपू सुल्तान ने ओटोमन के सुल्तान अब्दुल हामिद प्रथम के पास इस्तांबुल में अपने दूत भेजे और सैन्य सहायता मांगी. हालांकि ओटोमन के सुल्तान ने उसका ज्यादा समर्थन नहीं दिया वो किसी बड़ी शक्ति से उलझना नहीं चाहता था लेकिन टीपू ने उम्मीद नहीं छोड़ी और ओटोमन से अपने डिप्लोमेटिक रिश्ते बनाये रखनी की कोशिश जारी रखी.
- टीपू सुल्तान मिलिट्री के आधुनिकीकरण में विश्वास रखता था उसने मैसूर के राकेट और नेवी शक्तियों को बढ़ावा दिया और साथ ही प्राशासनिक स्तर पर भी विकास कार्य किये एवं सिल्क उत्पादन और विक्रय के काम को बढ़ाया.
- टीपू सुल्तान का कहना था कि 200 साल भेड़ के जैसे जीने से अच्छा हैं कि 2 दिन शेर के माफिक जियो. उसे टाइगर्स से बहुत लगाव था, उसने मद्रास से 200 मील दूरी पर स्थित सेरिंगपटनम में स्थित किले में 6 टाइगर्स पाल रखे थे और यही पर उसने टाइगर के जैसे दिखने वाले सिंहासन का निर्माण करवाया था. उसकी सेना के पास टाइगर का बैज था, उसकी तलवार भी टाइगर के जैसे झुके हुए टाइगर के आकार में बनी थी, उसका पसंदीदा खिलौना मैकेनिकल टाइगर था जिसमे टाइगर ब्रिटिश अधिकारी के पीछे भाग रहा हैं ,अब ये खिलौना विक्टोरिया एंड अल्बर्ट म्यूजियम में हैं.
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