सिराज-उद्दोलाह जीवन परिचय | Sirajuddaula biography in Hindi

सिराज-उद्दोलाह जीवन परिचय (Sirajuddaula biography in Hindi) 

सिराजुद्दौला उन शासकों में से एक था जो भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के इरादे को समझते थे, नवाब ने बंगाल को अंग्रेजों से बचाने के लिए पुरजोर कोशिश की थी, इसी क्रम में प्लासी का युद्ध हुआ था, जिसमें मीर जाफर से मिले धोखे के कारण नवाब ने बंगाल की सत्ता और अपना जीवन दोनों ही गंवा दिया. लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात ये हुयी कि इस घटना से अंग्रेजों को देश पर शासन करने के लिए काफी सम्बल और आत्म-विशवास मिल गया.

सिराज-उद्दोलाह

क्र. म.(s.No.)परिचय बिंदु (Introduction Points)परिचय (Introduction)
1.पूरा नाम ((Full Name)मिर्जा मोहम्मद सिराजुदोल्लाह
2.जन्म दिन (Birth Date)1733
3.जन्म स्थान (Birth Place)मुर्शिदाबाद,बंगाल सूबा,मुगल साम्राज्य
4.पेशा (Profession)नवाब
5.राष्ट्रीयता (Nationality)भारतीय
6.उम्र (Age)24 वर्ष (When Dead)
7.गृहनगर (Hometown)मुर्शिदाबाद
8.धर्म (Religion)शिया इस्लाम
9.जाति (Caste)
10.वैवाहिक स्थिति (Marital Status)विवाहित
11.मृत्यु (Death)2 जुलाई 1757

सिराज-उद्दोल्लाह बचपन और प्रारंभिक जीवन (Childhood & Early Life)

सिराज के पिता बिहार के शासक था और उसकी माँ नवाब अलीवर्दी खान की सबसे छोटी बेटी थी. अलीवर्दी खान के बेटा नहीं था इसलिए उसने सिराज की परवरिश अपने उत्तराधिकारी के जैसे ही की थी, अलीवर्दी खान ने सिराज की शादी बेहद शाही तरीके से की.

पिता (Father)जेऊनिद्दीन अहमद खान
माता (Mother)अमीना बेगम
नाना (Grandfather)अलीवर्दी खान
पत्नी (Wife)लुत्फुनिसा बेगम
मौसी (Aunty)घसेटी बेगम
कजिन (Cousins)राजा राज्बल्लभ, मीर जाफर खान और शक्तावत जंग

सिराज-उद्दोल्लाह जीवन (Sirajuddaula Early life)

  • सिराज ने 1746 में मराठों के विरुद्ध अलीवर्दी खान की युद्ध में मदद भी की थी. सिराज को ढाका में और उसके छोटे भाई इकरामेद्दौला को आर्मी का नेतृत्व सौंपा गया.
  • मई 1752 में बंगाल के नवाब अलीवर्दी खान ने सिराजुदोल्लाह को अपना उतराधिकारी घोषित किया. अपने सत्ता के पिछले वर्षों में कुछ पारिवारिक सदस्यों की मृत्यु से अलीवर्दी खान मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर हो गया था और 10 अप्रैल 1756 को उसकी मृत्यु हो गयी. जब अलीवर्दी ने 23 वर्षीय सिराज को नवाब घोषित किया तो यूरोपियन कम्पनियों ने भी उसका आदर-सत्कार किया.
  • अपनी मृत्यु से पहले नवाब अलीवर्दी ने सिराज को समझाया था कि वो अब आंतरिक शत्रुओं पर ध्यान दे और उन्हें दबाए रखे. कहा जाता हैं कि सिराज ने अपने नाना की मृत्यु शैया पर रहते हुए कुरान हाथ में ले ये कसम खायी थी कि वो कभी शराब को हाथ नहीं लगाएगा, और ये कसम उसने अंत तक निभायी भी थी,.

सिराज-उद्दोलाह: बंगाल का नवाब  (Sirajuddaula: As the Nawab of Bengal)

  • बंगाल के नये नवाब के स्वागत के दौरान सिराज अपने रिश्तेदारों और मित्रों में उपजी इर्ष्या को देख ही नहीं पाया था. उसके विरुद्ध साजिश करने में उसकी मासी घसेटी बेगम और उसका पुत्र शौकत जंग भी शामिल था. धीमे-धीमे सिराज को समझ आने लगा कि उसकी मौसी के इतना धन हैं कि वो सभी दरबारियों को अपनी तरफ कर सकती हैं,जिससे सिराज की मुश्किलें बढ़ जाए. इसलिए सिराज ने उसके धन को कब्जे में लेकर उसे नजरबंद किया, इस तरह से सिराज ने शुरू में ही ये सुनिश्चित करने की कोशिश की कि उसके दरबार में कोई उसका शत्रु ना रहे.
  • सिराज ने सरकारी तंत्र में बदलाव किए, सबसे विश्वसनीय मीर मदन खान को उसने वित्त मंत्री (बक्शी) बनाया और हिन्दू कायस्थ मोहनलाल को नवाब का दीवान नियुक्त किया. लेकिन इस तरह हिन्दू को दरबार में ऊँचा पद देने से उसके सेनापति मीरजाफर ने अपना अपमान समझा.
  • बंगाल के नवाब सिराज ने देखा कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी धीमे-धीमे अपने पैर फैला रही हैं, उसे तुरंत ही कम्पनी का उद्देश्य समझ आ गया. वो ब्रिटिशर्स को बंगाल में आगे बढ़ते नहीं देख सकता था . अंग्रेजों ने जब नवाब की आज्ञा के बिना ही विलियम के किले को मजबूत करना शुरू किया तो नवाब को नाराजगी दिखाने का कारण मिल गया, इसके अलावा अंग्रेजों को व्यापार के लिए दिए गये नियमों का गलत फायदा उठाने और उसके साथ धोखा-धड़ी करने वाले अधिकारीयों को पनाह देने के लिए भी उसका गुस्सा अंग्रेजों के प्रति बढ़ गया.
  • सिराज जहां अंग्रेजों के प्रति पहले से क्रोधित हो चूका था वही अंग्रेजों ने विलियम किले को और मजबूत करना शुरू कर दिया, नवाब ने जब काम रोकने को कहा तो भी अंग्रेजों ने नवाब की एक न सुनी,जिससे नवाब ने अंग्रेजों के विरुद्ध ठोस कारवाही करने की सोची.
  • सिराज ने सेना एकत्र करके ब्रिटिश अधिकृत क्षेत्र कलकता पर आक्रमण कर दिया, 1756 तक उसने कलकता पर कब्जा कर लिया और विलियम के किले को भी अपने अधीन कर लिया. किले को कब्जे में लेने के बाद सिराज ने सभी अंग्रेजों को एक छोटी सी जेल में डाल दिया. जहां 64 में से 43 कैदियों की दम घुटने और सांस की कमी से मृत्यु हो गयी. हालांकि ब्रिटिशर्स ने सिराजुद्दौला के साथ शांति वार्ता की कोशिश की और सिराज इस घटना के लिए माफ़ी मांगने के लिए भी तैयार हो गया लेकिन वास्तव में अंग्रेज इस घटना को भूल ना सके.
  • नवाब के दरबार में सिराज से नफरत खत्म नहीं हो रही थी, मीर जाफर जहां मोहनलाल को दीवान बनाने से नाराज था वही बंगाल के व्यापारी भी नवाब से खुश नहीं थे और उन्हें अपनी सम्पति को लेकर हमेशा असुरक्षा बनी रहती थी. सिराज के दरबार में उसके खिलाफ साजिश चल रही थी, और अंग्रेज इसका फायदा उठाने को  तैयार बैठे थे. ईस्ट इंडिया कम्पनी  कोर्ट में प्रतिनिधि विलियम वाट ने रोबर्ट क्लाइव को इस साजिश के बारे में सूचित किया, और बताया कि मीर जाफर, यार लुतुफ़ खान, राय दुर्लभ,ओमीचंद और कुछ अन्य मंत्री भी सिराज के खिलाफ साजिश कर रहे हैं,जिसका फायदा अंग्रेजों को मिल सकता हैं. इसी क्रम में मीर जाफर ने अंग्रेजों से संधि की जिसमें अंग्रेजों ने नवाब के खिलाफ युद्ध जीतने के बाद उसे बहुत सारे पैसे और सत्ता देने का वादा किया.
  • रोबर्ट क्लाइव ने चंद्नगढ़ पर हमला कर दिया नवाब पहले से मराठा और अफगान से आतंकित था इसलिए उसने अंग्रेजों से सामना करने के लिए पूरी सेना नहीं भेजी थी, इसी दौरान उसे अपनी सेना मजबूत करने की जरूरत लगी उसने फ्रेंच सेना से सहायता मांगी,और प्लासी के युद्ध की तैयारी की.

प्लासी का युद्ध (The Battle of Plassey)

सिराजुद्दौला की 50,000 सैनिकों ने रोबर्ट क्लाइव के 3,000 सैनिकों का सामना किया, लेकिन मीर जाफर के षड्यंत्र के कारण सिराज युद्ध जीत नहीं सका, इसके अलावा सिराज सबसे विश्वसनीय मीर मदन खान भी बुरी तरह से घायल हो गया. सिराज ने मीर जफर और राजदुर्लभ से सलाह-मशवरा किया और उन्होंने उसे मुर्शिदाबाद जाने की सलाह दी. सिराज अपने 2000 घुड़सवारों के साथ मुर्शिदाबाद की तरफ यात्रा शुरू कर दी, इस मौके का फायदा उठाकर क्लाइव ने आक्रमण किया, और सिराज की सेना इस आकस्मिक युद्ध के लिए तैयार नहीं थी इस कारण सिराज की हार हुयी,और सिराज को वहां से भागना पड़ा. प्लासी के युद्ध का इतिहास जानने के लिए यहाँ पढ़े 

मृत्यु  (Death & Legacy)

सिराज मुर्शिदाबाद की तरफ भाग गया जहां उसने अपने विशवास-पात्र लोगों को एकत्र किया और वहां से नाव में पटना चला गया, जहां एक रात के लिए उसने राजमहल में शरण ली. हालांकि मीर जाफर के आदमी ने उसे पहचान लिया था,और उसे पकडकर मीर जाफर के बेटे मीर मीरन को सौंप दिया जिसके आदेश पर मोहम्मद अली बेग ने 2 जुलाई 1757 को सिराज को मार दिया और उसे मुर्शिदाबाद के खुश्बाग में दफना दिया.

सिराज भले प्लासी का युद्ध हार गया था लेकिन अंग्रेजों के विरुद्ध उसकी कोशिश ने उसे स्वतंत्रता सेनानी बना दिया. आज भी वेस्ट बंगाल और बांग्लादेश में उसका सम्मान किया जाता हैं और बहुत से शैक्षिक संस्थाओं के नाम उसके नाम पर हैं. 1967 में उसकी वीरता के सम्मान में एक बायोपिक नवाब सिराजुदोल्लाह भी रिलीज की गयी.

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