नाना साहिब का जीवन परिचय (Nana Sahib Age, Caste, Education, Peshwa, Jhasi ki Rani,Death, Biography and history in hindi)
मराठा शासकों में शिवाजी के बाद सबसे प्रभावशाली शासक के तौर पर नाना साहिब का नाम लिया जा सकता हैं, क्योंकि शिवाजी ने जहां मुगलों की गुलामी अस्वीकार की थी वही नाना साहिब ने भी अंग्रेजों के हस्तक्षेप को बर्दाश्त करने से साफ़ मना कर दिया था,और इस कारण ही अंग्रेजों से युद्ध भी किया था. नाना साहिब पेशवा वंश के थे और उनका शासन क्षेत्र भी महराष्ट्र के बाहर रहा. 1857 की क्रान्ति में नाना साहिब का नाम प्रमुखता से लिया जाता हैं, उनके प्रभाव से ही कानपुर और अवध से लेकर दिल्ली तक की क्रांति को सही दिशा मिली थी.
नाना साहिब पारिवारिक जानकारी (Nana Sahib Family details, Birth Details)
वास्तविक नाम (Real name) | धुंधू पंत |
पिता (Father) | नारायण भट्ट |
जन्म (Birth date) | 1824 |
जन्मस्थान (Birth place) | बिठुर |
माता (Mother) | गंगा बाई |
भाई (Brother) | रघुनाथ और जनार्धन |
पत्नी (Wife) | सांगली के राजा की बहिन |
पुत्र (Son) | शमशेर बहादुर |
नाना साहिब के भाई रघुनाथ राव ने मराठाओं के साथ विश्वासघात किया था और अंग्रेजों से हाथ मिला लिया जबकि जनादर्न की युवास्था में ही मृत्यु हो गयी.
नाना साहिब की शैक्षणिक जानकारी (Education Details of Nana Sahib)
नाना साहिब पारम्परिक शिक्षा ग्रहण की थी, इस कारण उन्हें संस्कृत और धार्मिक ग्रन्थों का ज्ञान था. लेकिन उन्होंने अंग्रजी और कोई भी अन्य पश्चिमी शिक्षा नहीं ली थी.नाना साहिब ने युद्ध कौशल और रण-नीति की औपचारिक शिक्षा ली थी. उनको घोड़ो, हाथियों और ऊंटों का बहुत शौक था साथ ही कई तरह के हथियार थे.
नाना साहिब कैसे बने पेशवा?? नाना साहिब का शासन काल (Kaise bane Peshwa aur Shahsankal)
छत्रपति शाहू ने मराठा राज्य में 1749 में अपनी मृत्यु से पहले पेशवा का पद बनाया, इस तरह मराठाओं में पेशवा शासन और उनके वंश की प्रभाविता शुरू हुई. आखिरी पेशवा बाजीराव द्वितीय ने 7 जून 1827 के दिन नान साहिब को गोद लेकर अपना उतराधिकारी घोषित कर दिया. जिसके बाद नाना साहिब ने 20 वर्षों तक अंग्रेजों के साथ संघर्ष करते हुए शासन किया.
1857 की क्रांति और नाना साहिब (1857 Revolt and Nana Sahib)
लार्ड डलहौजी ने देश के ज्यादातर हिस्सों को अपने कब्जे में लेने के लिए “डॉक्ट्रिन ऑफ़ लेप्स” की नीति लागू की जिसके अंतर्गत भारतीय शासकों के अपने दत्तक पुत्र को उनका उतराधिकारी नही माना गया,और वहाँ पर अंग्रेजों का शासन मानने का आदेश दिया गया. इस तरह ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बहुत से राज्य हडप लिए जिनमें झांसी,अवध और नागपुर शामिल थे. लार्ड कैनिंग के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े
पेशवा बाजी राव द्वितीय के देहांत के बाद अंग्रेजों ने नाना साहेब की वार्षिक पेंशन बंद कर दी थी.नाना साहिब ने अपना विरोध दर्ज करवाने के लिए दीवान अज़िमुल्लाह को इंग्लैंड के डायरेक्टर ऑफ़ कोर्ट तक भेजा था, लेकिन उन्हें वहां अनुमति नहीं मिली. इससे नाना साहिब बहुत नाराज हुए,और उन्होंने अंग्रेजों से युद्ध करने की सोची.
4 जून 1857 को कानपुर में सैन्य विद्रोह हो गया. उन्होंने कानपुर का सैन्य विद्रोह सम्भाला था.कानपुर को अंग्रेजों से जीतने के बाद नान साहिब ने खुदको कानपूर का पेशवा घोषित कर दिया. नाना साहिब ने कानपुर के कलेक्टर चार्ल हीलरसन को विशवास में लिया,और ये योजना बनाई कि यदि कानपुर में सैन्य विद्रोह होता है तो वो 15000 सैनिकों के साथ उनकी मदद करेंगे, लेकिन नाना साहिब ने कुशल कूटनीति का परिचय देते हुए ना केवल अंग्रेजों से युद्ध किया बल्कि कानपुर पर कब्ज़ा कर लिया. इसी दौरान सती-चौरा घाट काण्ड भी हुआ,जिसमें बहुत से अंग्रेज,महिला और बच्चे मारे गए. इसे अंग्रेजों ने नाना साहिब का विशवास घात माना. इसके बाद बचे हुए अंग्रेजों को नाना साहिब ने बीबीगढ़ एक वैश्या हुसैनी खानुम की निगरानी में रखा,जहां पर खाने और स्वच्छता की कमी चलते और कुछ अंग्रेज महिलाये और बच्चे मारे गये,जबकि कुछ को एक अनजान आदेश के कारण मार दिया गया.इस तरह नाना साहिब के नेतृत्व में 1857 की क्रांति के दौरान कानपुर में अंग्रेजों को बंदी बनाकर रखना क्रांतिकारियों का अंग्रेजों के खिलाफ लिया गया सबसे बड़ा सफल विद्रोह था.हालांकि नाना साहिब की ये सफलता ज्यादा दिन नहीं टिकी, नाना साहिब के भई बाला राव ने भी अंग्रेजों से ओंग (aong) का युद्ध किया जिसमें उनकी हार हुयी. और ऐसे कई छोटे-बड़े युद्ध के बाद आखिर में 16 जुलाई 1857 को जनरल हेवलॉक(Havelock) ने कानपूर को वापिस कब्जे में ले लिया. मंगल पांडेय के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े
नाना साहेब और झांसी की रानी (Nana Sahib and Jhasi ki Rani)
नाना साहिब के बचपन के मित्र तात्या टोपे थे, साथ ही रानी लक्ष्मीबाई पर भी नाना साहिब का स्नेह था. इसी कारण झांसी की समस्या को सुलझाने में नान साहिब ने लक्ष्मीबाई की मदद की. मार्च 1858 में जब झांसी पर अंग्रेजों ने आक्रमण किया तब लक्ष्मीबाई ने नाना साहिब और तात्या टोपे से सहायता मांगी. नाना साहिब ने तात्या टोपे के नेतृत्व में 20,00 सैनिको की टुकड़ी झांसी भेजी,लेकिन वो अंग्रेजों से हार गये. इसके बाद उन्होंने लक्ष्मीबाई की झांसी से निकलने और ग्वालियर जीतने में भी मदद की. झाँसी के महाराजा गंगाधर राव नेवालकर के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े।
नाना साहिब की मृत्यु (Cause of Nana Sahib Death)
ईस्ट इंडिया कम्पनी ने जब कानपुर पर कब्जा कर कर लिया उसके कुछ समय बाद नाना साहिब गायब हो गये,हालांकि नवम्बर 1857 तक तात्या टोपे कानपुर को वापिस हासिल करने की कोशिश करते रहे. सितम्बर 1857 में नाना साहिब को मलेरिया होने की खबर आई,जिसे विश्वसनीय नही माना गया,क्योंकि जून 1858 तक तो तात्या टोपे,रानी लक्ष्मीबाई और राव साहिब ग्वालियर पर नाना साहिब के पेशवा होने की दावेदारी कर रहे थे. 1859 तक नान साहिब के नेपाल चले जाने की बात पता चली. फरवरी 1860 में अंग्रेजों को पता चला कि नान साहिब की पत्नियाँ नेपाल में शरण लिए हुए हैं,और नाना साहिब भी वही हैं.
इसके बाद अब तक नाना साहिब की मृत्यु को लेकर 2 तथ्य सामने आये हैं. एक मत के अनुसार नाना साहिब की मृत्यु 81 वर्ष की आयुमें 1906 को हुयी थी.जबकि 1953 मे आई एक रिपोर्ट में बताया गया कि नाना साहिब के ख़ास दीवान अजीमउल्लाह खान की एक डायरी मिली थी जिसके अनुसार वो वापिस भारत लौटे थे जहां 1926 में उन्होंने गोमती नदी के किनारे सीतापुर जिले में 102 वर्ष की आयु में प्राण त्यागे थे.
नाना साहिब से जुड़े रोचक तथ्य ( Unknown Facts about Nana Sahib)
- नाना साहिब को अंग्रेजी का ज्ञान नहीं था लेकिन वो रोज एंग्लो-इंडियन जर्नल पढ़ते थे, इसके लिए उन्होंने एक निजी अनुवादक नियुक्त कर था,इस तरह वो अंग्रेजो से जुडी हर जानकारी रखते थे.
- वो कभी विदेश नहीं गए लेकिन उन्हें अंग्रेजों के कुलीन वर्ग की जीवन शैली का बहुत शौक था वो बिठुर में अपने यहाँ यूरोपियन स्टाइल में पार्टी रखते थे, उनकी सहिष्णुता और व्यवहार कुशलता उनके सम्पर्क में आने वाले हर अंग्रेजो को प्रभावित करती थी.
- 1857 में सैन्य विद्रोह के दौरान जब विद्रोही सैनिक बहादुर शाह जफर से मिलने दिल्ली जा रहे थे तब कल्यानपुर में नाना साहिब इन सैनिकों से मिले और उन्हें कानपुर में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने को प्रेरित किया, सैनिको ने ना मानने पर नाना साहिब ने उन्हें जीतने पर वेतन बढ़ाने का आश्वासन भी दिया था.
- सैन्य विद्रोह के बाद नाना साहिब ने अंग्रेजों को कई पत्र लिखे,इन पत्रों को नई दिल्ली के नेशनल आर्चिव में रखा गया हैं. जिसमे तात्या टोपे का डिक्लेरेशन का भी लिखा हैं जिसके अनुसार नाना साहिब का क्रान्ति में योगदान ना तो पहले से तय था नाही प्लांड (Planned )था. बेग़म हज़रत महल के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े
नाना साहिब के नाम पर स्मारक (Monuments on Nana Saheb)
- बिठुर में नाना राव किला हैं, जो देखरेख के अभाव में जंगल बना चूका हैं. यहाँ पर पेशवा नाना राव पार्क भी बना हुआ हैं,जिसके पास ही उनका स्मारक लगा हुआ हैं.
- कानपूर में जहां सती चौरा काण्ड हुआ था वहाँ पर अंग्रेजों ने मृत अंग्रेजो और उनके परिवार की यद् में मासकर(Massacre ) घाट बनाया था,स्वतंत्रता के बाद इसका नाम बदलकर नानाराव घाट कर दिया गया हैं.
- साहिब के बारे में ये कहा जा सकता हैं- एक पेशवा ऐसा भी था, जिसने अंग्रेजों से हारकर भी बाजी जीती थी, इतिहास भी अचम्भित हैं कि कैसे उसने 1857 के क्रांति की कहानी अपनी तलवार से लिखी थी?
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