खंडेराव होलकर का जीवन परिचय, इतिहास, डेथ, 10 पत्नियों के नाम, कॉज ऑफ़ डेथ, युद्ध [Khanderao Holkar History in Hindi] (Biography, Death, How Died, Age, 10 Wives name, Story in Hindi)
इतिहास एक ऐसा विषय है जिसको जितना जानोगे उतना ही उसमें खो जाओगे। इतिहास का हर पन्ना उन कहानियों से जुड़ा है जो हम अपनी जिंदगी में एक बार जरूर पढ़ते हैं। जिसमें हमें राजा महाराजा, उनके युद्ध और जीवन के बारे में कई बातें पता चलती हैं। आज हम आपको बताएंगे एक ऐसे ही योद्धा के बारे में जिनका नाम मराठा साम्राज्य में काफी प्रसिद्ध है। खंडेराव होलकर जिन्हें महान और वीर योद्धा माना जाता है, और उनका इतिहास बताया जाता है। तो चलिए जानते हैं उनके जीवन से जुड़े कुछ पहलुओं के बारे में।
खंडेराव होलकर का इतिहास (History)
खंडेराव होलकर जन्म एवं जीवन परिचय (Birth and Biography)
पूरा नाम | श्रीमंत सरदार खंडेराव होलकर सूबेदार बहादुर |
जन्म | सन 1723 में |
जन्म स्थान | पूना, महारष्ट्र |
मृत्यु | सन 1754 |
मृत्यु स्थान | कॉलरा शाहपुर (कोटाह के पास) |
आयु | 31 साल |
धर्म | हिन्दू |
जाति | मराठा |
साम्राज्य | मराठा साम्राज्य |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
खंडेराव होलकर परिवार (Family)
पिता का नाम | मल्हार राव 2 होलकर |
माता का नाम | गौतमबाई |
भाई का नाम | – |
बहन का नाम | उदाबाई, संतुबाई, सीताबाई |
पत्नी का नाम | अहिल्याबाई होलकर (इनके अलावा 9 पत्नियाँ और थी) |
बेटे का नाम | माले राव होलकर |
बेटी का नाम | मुक्ताबाई |
भतीजे का नाम | तुकोजी राव होलकर |
खंडेराव होलकर शुरूआती जीवन (Early Life)
खंडेराव होलकर जो की सेनापति श्रीमंत महाराज मल्हार राव होलकर और रानी गौतमाबाई के पुत्र थे। उनका जन्म सन 1723 ईo में हुआ था। वह बचपन से ही राज काज में काफी रुचि लेते थे, जिसके कारण उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर छोटी सी आयु में स्वतंत्र होकर लड़ाई लड़ी थी। उनका स्वभाव भले ही क्रोध भरा रहा था, लेकिन वो वीर और साहसी व्यक्ति थे।
खंडेराव होलकर विवाह, पहली पत्नी, पुत्र, पुत्री (Wife)
सन् 1735 ईo में खंडेराव होलकर का विवाह देवी अहिल्याबाई के साथ हुआ। उनके एक पुत्र और एक पुत्री थे, पुत्र मालेराव और पुत्री मुक्ता। इतना ही नहीं खंडेराव की 10 पत्नियां थीं।
खंडेराव होलकर 10 पत्नियों के नाम (10 Wives Name)
खंडेराव होलकर की पहली पत्नी का नाम तो हमने आपको बता दिया, लेकिन क्या आप जानते हैं खंडेराव होलकर की 9 और पत्नियाँ थी. हालांकि इनके नाम इतिहासकारों द्वारा नहीं दिए गये हैं.
खंडेराव होलकर शिक्षा एवं युद्ध (Fights)
खंडेराव होलकर ने अपने पिता से युद्ध कला की शिक्षा ली। जिसमें वो काफी निपुण हो गए थे। इसके बाद उन्होंने अपने जीवन में निम्न युद्ध में अपना योगदान दिया.
निजाम और मराठा का युद्ध
सन् 1737 ई0 में निजाम और मराठों के बीच युद्ध की शुरूआत हुई खंडेराव ने उस युद्ध में बेहतरीन प्रदर्शन दिखाते हुए युद्ध जीता और निजाम पर विजय हासिल की। इसके बाद मालवा में मुगलों की ओर से शाजापुर के कमाविसदार को लूटा गया, बस्तियों को जलाया गया, और कई लोगों को जान से मार दिया गया। इसकी खबर जैसे ही होलकर सैनिकों को लगी तो खंडेराव होलकर ने मीरमानी खान पर हमला कर उसे मार गिराया।
पुर्गालियों के साथ युद्ध
सन 1739 ई० में मराठो की पुर्तगालियों के साथ युद्ध चल रहा था| तभी खंडेराव ने संताजी वाघ के साथ मिलकर तारापुर के किले की नीचे बारूदी सुरंगे बिछाकर धमाका कराया| जिसके कारण किले की दीवारें ध्वस्त हो गईं और मराठों ने घमासान युद्ध कर किले को हासिल कर लिया|
देवली एवं बगरू युद्ध
जब भी 1747 ई० के देवली युद्ध, 1748 ई० बगरू युद्ध का नाम आता है तो सबसे पहले खंडेराव होलकर का वर्णन किया जाता है। क्योंकि उन्होंने ज्यादातर हर युद्ध में भागीदारी की थी।
जाटों पर आक्रमण
जनवरी 1754 ई. के शुरूआत में खण्डेराव ने चार हजार मराठा सेना के साथ मिलकर अपना डेरा लगाया। जिसके बाद उन्होंने जाट प्रान्त के मेवाती जिलों में अधिकार जमाने के लिए मराठा टुकड़ियों को रवाना कर दिया। मराठा सैनिकों ने पहाड़ और जंगलों में छिपकर जाटों पर आक्रमण किया और अपना अधिकार हासिल किया। जिस समय मराठा सैनिकों ने हमला किया उस समय सूरजमल जाट का पुत्र जवाहर सिंह बरसाना में मौजूद थे। डर इतना ज्यादा बढ़ गया कि उसने बरसाना छोड़ने का फैसला लिया और डींग पहुंच गए। वहीं उन्होंने पनह ली। जिसके बाद खंडेराव ने जाटों के शहरों पर अपना हक जमाना शुरू कर दिया। साथ ही अपने राज्य को वहां स्थापित भी किया।
गंगूला नामक जाट गढी
गंगूला नामक जाट गढी पर भी मराठों ने आक्रमण किया और इसे हासिल करने में कामयाब रहे। समय बीतता रहा और खंडेराव अपना परचम फैलाता रहा देखते ही देखते उसने जाट साम्राज्य हासिल कर लिए जिसके कारण अब वो काफी वीर और साहसी यौद्धा बन गए।
खंडेराव होलकर एवं मुग़ल बादशाह
खंडेराव होलकर का खौफ इतना ज्यादा हो गया था, कि उनसे मुगल बादशाह भी डरने लगे थे। एक बार जब खंडेराव होलकर दिल्ली पहुंचे तो दिल्ली में भगदड़ मच गई कुछ लोग उस समय अपने घर छोड़कर ही भाग खड़े हुए। मुगल बादशाह भी उनके आने से खौफ में थे। लेकिन खंडेराव सिर्फ बातों को सुलझाने दिल्ली पहुंचे थे, युद्ध के लिए नहीं, दिल्ली के बादशाह ने खंडेराव को खुश करने की काफी कोशिश की, उन्होंने अशर्फियां, छ: वस्त्रों की खिलअत, जड़ाऊ सरपेच, तलवार और हाथी उनको भेंट स्वरूप दी| लेकिन खंडेराव ने उन सभी उपहारो को लेने से मना कर दिया। वो उस समय सिर्फ मीरबख्शी के पास आया था, उनसे विशेष विषय पर चर्चा करने ना कि कोई सरोकार या उपहार लेने। खंडेराव ने ऐसा ही किया उन्होंने मीरबख्शी के साथ युद्ध से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की और उसके बाद दिल्ली से रवाना हो गए और अपने शहर आ गए।
खंडेराव होलकर की मौत, उम्र (Death, Age)
17 मार्च, 1754 ई० को खण्डेराव होलकर युद्ध का संचालन कर रहे थे उसी समय घात लगाये बैठे जाट सैनिकों ने किले में घुसकर उनपर गोलियों से हमला कर दिया। हमले में एक गोली खण्डेराव होलकर को भी लगी। जिसके बाद उनकी मृत्यृ हो गई। उस समय खंडेराव होलकर की उम्र 31 साल थी. खंडेराव होलकर की मृत्यु के बाद उनकी 10 पत्नियों में से 9 उनके जाने के बाद सती हो गई। लेकिन अहिल्याबाई ने ऐसा नहीं किया। वो अपने पति की मृत्यृ के बाद भी अपने हक की लड़ाई लड़ती रही। खंडेराव की मृत्यु के बाद, मल्हार राव की भी मृत्यु हो गई। जिसके बाद खंडेराव होलकर के इकलौते बेटे ने अपनी मां अहिल्याबाई होल्कर के अधीनता में रहकर कम उम्र में ही इंदौर की गद्दी संभाली और अपना शासन शुरू कर दिया।
खंडेराव होलकर की मौत का कारण (How to Died)
खंडेराव होलकर की मृत्यु के कारण की बात करें, तो आपको बता दें कि उनकी मृत्यु गोली लगने की वजह से हुई थी.
खंडेराव होलकर प्रतिमा
अहिल्याबाई ने गागरसोली गांव में अपने पति की याद में एक छत्री का निर्माण करवाया और खण्डेराव की प्रतिमा स्थापित किया।
खंडेराव होलकर साम्राज्य
खंडेराव होलकर एक ऐसे ही शूरवीर योद्धा हैं जिन्हें आज भी इतिहास के पन्नों में याद किया जाता है, कि कैसे उन्होंने अपने शासन को बचाने के लिए कौन-कौन से अहम कदम उठाए और किस तरह कई साम्राज्य हासिल किए। इसमें उनके साथ-साथ उनकी पहली पत्नी अहिल्याबाई ने अहम भूमिका निभाई उन्होंने उनके जाने के बाद उनका साम्राज्य ही नहीं बल्कि उनकी याद को भी लोगों के दिलों में ताजा रखा। उनके नाम से जुड़े कई बड़े कार्य करवाए। साथ ही शासन करते हुए उनकी धरोहर को कायम रखा। इसलिए कहा जाता है कार्य अच्छे होगे तो व्यक्ति को किसी पहचान की कोई जरूरत नहीं होती। हमेशा उसके कार्य बोलते हैं और लोगों के बीच प्रशंसा का कारण बनते हैं। इसलिए खंडेराव की तरह निडर बन हर मुसीबत का सामना खुलकर करें जीत हमेशा हासिल होगी।
ऐसे ही कई ऐसे योद्धा या कह लीजिए की वीर और महान शूरवीर हैं जिन्होंने अपनी जान की परवाह ना करते हुए अपने साम्राज्य को बचाया उसकी सुरक्षा की और अपने दुश्मनों के दांत खट्टे कर उनपर राज किया। आज भी इतिहास के पन्नों पर ऐसे ही शूरवीरों का नाम पढ़ाया जाता है, ताकि आने वाली पीढ़ी उन्हें हमेशा याद करें और उनकी कहानियों को जान सके।
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